Do you remember Ganesha drinking milk on 21 September, 2005

जब गणेश जी की मूर्तियों के दूध पीने की फैली थी अफवाह

आज से करीब करीब 28 साल पहले एक दोपहर सेकेंड शिफ्ट के लिए स्कूटर से यूएनआफिस पहुंचा था। उस समय छह – छह घंटे के शिफ्ट होते थे। सुबह का पहला शिफ्ट आठ बजे शुरू होता था और दूसरा शिफ्ट दो बजे शुरू होता जबकि रात का शिफ्ट आठ बजे रात से शुरू होकर दो बजे रात तक चलता था।
यह 21 सितम्बर 1995 का दिन था। जब यूएनआई आफिस में स्कूटर पार्क कर रहा था तभी उस समय समाचार संपादक के तौर पर कार्यरत श्री नरेश जी वहां आए। और बताया कि पूरे देश में लोग मंदिरों में जाकर दूध पिला रहे हैं। तुम इसके बारे में खबर बना दो। उस समय मैं यूनीवार्ता में विज्ञान वार्ता नामक एक कॉलम लिखता था जो हर बुधवार को प्रेषित होता था और हिन्दी के अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित होता था। इसलिए ऐसी खबरों को लेकर मुझसे उम्मीद की जाती है कि मैं कुछ अलग तरह से फीचर या आलेख तैयार करूं।
हालांकि समाचार संपादक ने जिस तरह से बताया उससे लगा कि वह मान रहे हैं कि लोग मंदिरों में जाकर गणेश जी को दूध पिला रहे हैं और गणेश जी दूध पी रहे हैं। यह कोई दैवीय चमत्कार है। वो चाहते थे वैज्ञानिकों से भी इस बारे में पूछा जाए। उनको उम्मीद थी कि वैज्ञानिक भी इसकी पुष्टि कर देंगे। जैसे ही उन्होंने बताया मेरे दिमाग में यह स्पष्ट हो गया यह महज अफवाह है। लोग मंदिरों में जाकर दूध पिला रहे थे‚ लेकिन गणेश जी दूध पी रहे थे या दूध बाहर नालियों में बहकर जा रहा था।
उस समय प्राइवेट खबरिया टेलीविजन चैनलों का जमाना नहीं था। इसके बावजूद अफवाह ऐसी तेजी से फैला कि पूरे देश में लोग दूध लेकर मंदिर जा रहे थे और गणेश जी को दूध पिलाने का उपक्रम कर रहे थे। जब यह लिख रहा हूं तक लगता है कि अफवाह फैलने या फैलाने के लिए टेलीविजन चैनलों की जरूरत नहीं है बल्कि टेलीविजन चैनलों को अफवाहों की जरूरत है।

अफवाह फैलने या फैलाने के लिए टेलीविजन चैनलों की जरूरत नहीं है बल्कि टेलीविजन चैनलों को अफवाहों की जरूरत है।
खैर मैंने इंडियन फिजिकल लेबोरेट्री के वैज्ञानिक से बात की। साथ ही विज्ञान प्रसार के अधिकारी से बात की। इसके आधार पर इस घटना की वैज्ञानिकों ने जो व्याख्या की उसके आधार पर मैंने तीन–चार टेक की खबर बनाकर समाचार संपादक को दे दिया। उन्होंने बताया कि यह सर्फेस टेंशन के कारण होता है। लोगों को लगता है कि दूध गणेश जी पी रहे हैं लेकिन दूध गणेश की मूर्ति से चिपक कर नीचे बह जाता है।
अब जब समाचार संपादक एवं अन्य लोगों को दिया तो वे भडक गए। उन्होंने कहा कि ऐसे कैसे खबर दे दें। वैज्ञानिकों से कहों कि वे इस बारे में प्रेस रिलीज भेज दें। मैंने कहा कि वे क्यों प्रेस रिलीज भेजेंगे। मैंने उनसे पूछा है तब उन्होंने बताया। खैर वह खबर वार्ता से प्रेषित हुई। इसके बाद मैंने डा़ गोविंद बल्लभ पंत हॉस्पीटल के मनोवैज्ञानिक से बात की और जिन्होंने बताया कि यह मास हीस्टीरिया है। इसका कोई आधार नहीं है बल्कि लोग विश्वास करते हैं कि ऐसा हो रहा है। उनसे बातचीत के आधार पर भी तीन चार टेक की खबर दी। वह भी यूनीवार्ता से प्रेषित हुई।
ये खबरें दूसरे दिन अखबारों में प्रकाशित हुई और इस घटना की वैज्ञानिक व्याख्या करने के बारे में जो भी कुछ छपा था वह वही था जो मैंने यूनीवार्ता के लिए लिखी थी। यही नहीं। तीसरे दिन अखबारों में एक खबर छपी थी जिसमें यह लिखा गया था कि ट्रेनों में और सार्वजनिक जगहों पर लोग बहस में तर्क कर रहे थे और बता रहे थे वैज्ञानिक इस बारे में क्या कह रहे हैं। इस तरह से हमारी एजेंसी की ओर से जारी खबरों ने लोगों को अफवाहों के बाजार में तर्क करने के लिए साम्रगी प्रदान की थी। वह व्यक्तिगत मेरे लिए संतोष का विषय था। हालांकि हमारी एजेंसी में कई लोग ऐसे थे जो गणेश जी को दूध पिलाए जाने काे चमत्कार ही मान रहे थे और इसे लेकर एक सहयोगी से तो मेरी ऐसी बहस हुई की झडप की नौबत आ गई थी।
उन दिनाें दूरदर्शन से आधे घंटे के लिए एक कार्यक्रम प्रसारित होता था – आजतक जिसे पेश करते थे एस पी सिंह जो पहले नवभारत टाइम्स में संपादक रह चुके थे। आज भी उनकी पत्रकारिता को सलाम करने का मन करता है जिन्होंने अपने चैनल पर दिखाया कि किस तरह से दूध नालियों से बहकर बाहर आ रहा था और कई लोग उसी दूध को जमा करके उसे वहीं बेच रहे थे और लोग मनमाने दाम पर खरीद रहे थे। यही नहीं‚ उनके चैनल पर सीएसआईआर के एक वैज्ञानिक को दिखाया था जिन्होंने गणेश जी के बदले जूते – चप्पल को ठीक करने के काम में आने वाले ट्राइपोड (Used by local cobbler) को दूध पिला रहे थे और उन्होंने दिखाया कि ये ट्राइपोड भी दूध पीता है। बाद में इसे लेकर किसी हिन्दूवादी संगठन ने केस कर दिया था कि वैज्ञानिक ने गणेश जी का अपमान किया है क्योंकि। हालांकि रामविलास पासवान ने वैज्ञानिक और उस चैनल का बचाव किया था।

वही आज तक आज अंधविश्वास और अंधभक्ति को बढावा देने वाला चैनल बन गया है। वही हाल बाकी चैनलों और ज्यादातर अखबारों का है। अखबार और टेलीविजन लोगों में वैज्ञानिक चेतना विकसित कर सकते हैं लेकिन यह अलग बात है कि आज अंधविश्वास और अफवाह फैलाना ही अखबारों और निजी टेलीविन चैनलों का धर्म हो गया है।

Rumor of drinking milk by Lord Ganesha’s idols had spread

The author recalls an incident from September 21, 1995, when rumors about Lord Ganesha drinking milk spread rapidly. As a journalist, the author was asked to cover the story and sought scientific explanations for the phenomenon. After consultations with scientists and a psychiatrist, it was revealed to be a result of surface tension and mass hysteria. The news items released by the author’s agency helped dispel the myth, but it caused controversy within the agency. The author also mentions how media channels and newspapers promoted superstition and blind faith instead of encouraging scientific awareness among the public.

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